Thursday, June 23, 2022

हर सप्ताह 72.0

 घर  आँगन  आधार  हमारे  बाबूजी 

करते  सबसे  प्यार  हमारे  बाबूजी


पुस्तक कापी खेल खिलौना है उनसे

घर के पालनहार हमारे बाबूजी


मेरी खाँसी तक पर रातों को जागे 

मेरी करुण पुकार हमारे बाबूजी


दादा दादी की लाठी हैं चश्मा हैं 

लगते श्रवण कुमार हमारे बाबूजी


अम्मा उनसे जब खटपट-खटपट करती 

मुस्काते  हर  बार  हमारे  बाबूजी 


मौन ही साधे रहते हैं अक्सर देखा

पर भीतर चित्कार हमारे बाबूजी


टूटे  जूते  फटी  जुराबें  पैरों  में 

बच्चों की सरकार हमारे बाबूजी


उनके कांधे से दुनिया को देखा है

मेरा  तो  संसार  हमारे  बाबूजी 


मेरा चेहरा पढ़ना उनको आता है

अनुभव  के अंबार  हमारे  बाबूजी


खेत बेचकर बहना के हाथों मेहंदी

कर्जा  और  उधार  हमारे  बाबूजी

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