Sunday, August 8, 2010

अपने -अपने अंदाज में कवियों ने प्रस्तुत की रचनाएं


भिवानी, जागरण संवाददाता : रविवार को दिनोद गेट स्थित सूर्या बैैंक्वेट में सांस्कृतिक मंच द्वारा राज्य स्तरीय राजेश चेतन काव्य पुरस्कार व सरस्वती सम्मान देने के लिए कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। समारोह में राज्यसभा सदस्य शादीलाल बत्रा मुख्यातिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली के रमेश अग्रवाल ने की। समारोह का उदघाटन भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के प्रदेश अध्यक्ष त्रिलोक शर्मा ने किया। इस अवसर पर हरियाणा साहित्य अकादमी की निदेशक डा. मुक्ता मदान, रघुबीर सिंह अत्री, गणेश गुप्ता विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम में राजेश चेतन काव्य पुरस्कार भिवानी के शायर प्रो. श्याम वशिष्ठ शाहीद को दिया गया, जबकि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रामेन्द्र जाखू साहिल को सरस्वती सम्मान से नवाजा गया। सम्मान समारोह के बाद कवि सम्मेलन में अलग-अलग अंदाज में कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की और वर्तमान व्यवस्था पर जमकर कटाक्ष किए। किसी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात की तो किसी ने अमेरिका व चीन को कमजोर बताया। कवि सम्मेलन की शुरूआत दिल्ली के कवि अनिल गोयल ने श्याम वंदना से की। वरिष्ठ कवि राजेश चेतन जैन ने अपनी कविता उसके बस की बात नही माध्यम से राजनेताओं, अमेरिका, पाकिस्तान, चीन पर निशाने साधे। उन्होंने इस कविता में राजनेताओं के चरित्र को भी लपेटा और वर्तमान व्यवस्था को बदलने का परामर्श भी दिया। हास्य कवि बागी चाचा ने वर्तमान परिवेश के परीक्षा ढर्रे पर जम कर कटाक्ष किए। उनकी रचना थी तोड़ दे अब जाति ओर धर्म की मचान को, भूल जा अभी तू गीता और पुराण को, बट चुकी है यह धरती आज टुकड़ों में बहुत, धर्म तू बना ने अपना पूरे आसमान को। दिल्ली के अनिल गोयल ने अपनी रचना की पंक्तियां गऊ माता को समर्पित की - एक गंगा है मां सबकी, मां धरती मां भवानी है, एक माता जन्म देती, मिली ये जिंदगानी है, खता ये हो रही कबसे एक गऊ मां को हम भूले नहीं है अहसास ये हमको, उसकी आंखों में पानी है। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे रामेन्द्र जाखू साहिल ने गजल कि लाइनें यूं पढ़ी- शर्मो हया के मोम की गुड़ियां पिघल गई, यूं देखते देखते दुनिया बदल गई। उनकी गजल की लाइनें थी- आपने ऐसा मसीहा देखा है क्या, जख्म देखकर पूछे दर्द होता है क्या। दिल्ली से आए हास्य कवि महेन्द्र अजनबी ने अपनी पंक्तियों से व्यवस्था को सहारा देने का प्रयास किया। एक शहर में एक शाम, मच रही थी भागमभाग, जैसे हो जंगल की आग, कोई किसी को कुछ न कहता, देखों यह कैसा था राग। श्याम वशिष्ठ शाहीद ने अपनी पंक्तियां यूं पढ़ी- रात में अंधकार पलता है, रोज सूरज मगर निकलता है, मुझ पे माता पिता की है रहमत, आसमां मेरे साथ चलता है। कवयित्री रितु गोयल ने अपनी कविता में मोबाइल व इंटरनेट पर कटाक्ष कर युवा वर्ग को समझाने का प्रयास किया। उनकी एक अन्य कविता में पिता की महिमा का जिक्र था। उन्होंने पिता को हिमालय व मोहल्ले की जुबान पर ताला व घर की छाया बताया। रितु की लाइनें थी- मन के मरूथल में भी अबकी बरसात हो, आग है हर तरफ प्यार की बात हो, भर सके रोशनी इस जहां में सदा, इस तरह की कोई चांदनी रात हो। कार्यक्रम संयोजक डा. बुद्धदेव आर्य ने अतिथियों का स्वागत किया व अध्यक्ष डा. वीबी दीक्षित महासचिव जगतनारायण ने आभार व्यक्त किया।

1 comment:

शारदा अरोरा said...

अच्छा लगा , पर अगर आप कविताओं की कुछ पंक्तियाँ और शेरों को अलग अलग थोड़ी जगह प्रदान करते तो और प्रभाव-शाली रहता और पढने वाले ज्यादा लुत्फ़ उठा सकते ।