Monday, August 9, 2010

हिन्दी में किए जा रहे हैं अमेरिका में साफ्टवेयर तैयार


अजय सैनी, भिवानी : विदेशों में हिन्दी का प्रचलन निरंतर बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में तो हिन्दी के साफ्टवेयर भी तैयार किए जा रहे है, लेकिन भारत में राष्ट्र भाषा होने के बावजूद भी हिन्दी को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पा रहा। इसको लेकर दैनिक जागरण ने देश विदेशों के मंचों से हिन्दी कविताओं को यात्रा करवाने वाले सारथियों से बातचीत की। कवि राजेश जैन चेतन ने कहा कि भारत में शिक्षा रोजगार से जुड़ी हुई है। इसीलिए शिक्षण संस्थाओं में पहले कदम से ही बच्चों को अंग्रेजी भाषा सिखाई जाती है। अभिभावकों का एक ही प्रयास होता है कि बच्चा अच्छी अंग्रेजी बोले और पढ़ाई पूरी करते ही रोजगार ले ले। चेतन ने कहा कि जब तक हिन्दी को गौरव का विषय नहीं माना जाएगा, पूरा सम्मान नहीं मिल सकता, इसके लिए हमारी शिक्षण संस्थाएं, संस्कार व सरकारी नीतियां भी पूरी तरह दोषी है। हास्य कवि बागी चाचा ने कहा कि उन्हें तो हैरानी होती है, जब विदेशी जमी पर उनसे मिलने वाले लोग बड़ी शुद्ध हिन्दी बोलते है, उनका सीना गर्व से फूल जाता है। लेकिन मेरे अपने देश में राष्ट्र भाषा होने के बावजूद हिन्दी को वह सम्मान नहीं मिल रहा, जिसकी वह हकदार है। बागी चाचा ने कहा कि इसके लिए कोई ओर जिम्मेवार नहीं, हमारी व्यवस्था में खामिया है। जिस दिन राष्ट्र भाषा को लागू करने के लिए सरकार ठोस निर्णय ले लेगी, उस दिन हिन्दी को स्वयं ही अपेक्षित सम्मान मिल जाएगा। कवि अनिल गोयल ने कहा कि उन्हें तो कई मौकों पर उलझनों का सामना करना पड़ता है, जब यह कहा जाता है कि बच्चे अंग्रेजी तो फर्राटेदार बोल सकते है, लेकिन उन्हे हिन्दी सिखाने में दिक्कत आ रही है, ऐसा एक-दो नहीं अनेक शिक्षण संस्थाओं में सुनने को मिलता है, इससे तो स्पष्ट है कि हमारे संस्कारों में भी विकृति आई है, तभी तो हिन्दी की यह हालत है। कवि महेन्द्र अजनबी कहते है कि उन्हे इस बात का गर्व है कि हिन्दी को विदेशों में खुले दिल से अपनाया जा रहा है, लेकिन अपने ही देश में हिन्दी को पूरा मान सम्मान नहीं मिल रहा। अजनबी कहते है कि यदि हम अपने शिक्षकों व चिकित्सकों को प्रोत्साहित करे की वे अपना कार्य हिन्दी में करे तो कोई ताकत नहीं जो हिन्दी के सम्मान को ठेस पहुंचा सके। एक प्रयोग हुआ कि अंग्रेजी दवाओं के लेवल पर हिन्दी में भी दवा का नाम होगा। यह प्रयोग सफल रहा तो इसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, तभी हिन्दी को सम्मान मिलेगा। कवयित्री रितु गोयल ने कहा कि हिन्दी के सम्मान के लिए हम सभी को सांझे प्रयास करने होंगे। हमें बच्चों को ऐसे संस्कार देने होंगे, ताकी वे अन्य भाषाओं को छोड़ राष्ट्र भाषा पर अधिक ध्यान दें। जब कदम से कदम मिलकर कारवां बढ़ेगा तो हिन्दी का मान सम्मान भी स्वत: ही बढ़ेगा। रितु कहती है कि अंग्रेजी को हमने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। भारतीयों की वास्तविक प्रतिष्ठा राष्ट्र भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग करने पर ही बढ़ सकती है। कवि प्रो. श्याम वशिष्ठ शाहीद से बातचीत की गई तो हमें अपनी शिक्षा के ढांचे में राष्ट्र भाषा के सम्मान को लेकर आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है। देश के अधिकांश विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी का प्रयोग अधिक होता है और राष्ट्रभाषा हिन्दी की अनदेखी होती है। जब तक राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर सरकार ठोस रणनीति नहीं बनाएगी, किसी प्रकार के दावे बेमानी है। उन्होंने कहा कि हमें बच्चों को बाल्यकाल से ही संस्कारों में हिन्दी सिखानी होगी तभी राष्ट्रभाषा का भविष्य उज्ज्वल होगा।

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