Monday, August 10, 2009

विदेशों में राष्ट्रभाषा को मिल रहे सम्मान पर गर्व


दैनिक जागरण का आभार
भिवानी : भारत के साथ-साथ विदेशों में भी हिन्दी का प्रचलन निरंतर बढ़ रहा है। भारतीय राष्ट्र भाषा को मिल रहे सम्मान से उन्हे गर्व होता है। यह बात अंतर्राष्ट्रीय कवि राजेश जैन चेतन दैनिक जागरण से खास मुलाकात के दौरान कही। उन्होंने कहा कि अमेरिका में हिन्दी यूएसए के नाम अप्रवासी भारतीय द्वारा 30 विद्यालय चलाए जा रहे है। इसमें करीब साढ़े चार हजार विद्यार्थी हिन्दी ज्ञान पर्याप्त कर रहे है। चेतन ने कहा

कि हिन्दी को बढ़वा देने में हिन्दी फिल्मों व हिन्दी कवि सम्मेलनों की अहम भूमिका रही है। विश्व के सभी विश्व विद्यालय में हिन्दी पढ़ाई जाती है। भारत के लिए इससे बड़ी गर्व की बात क्या हो सकती है। वे हाल ही में अमेरिका में आयोजित वार्षिक हिन्दी उत्सव में भाग लेने गए हुए थे। तो उन्हे यह सुनकर बहुत अच्छा लगा कि अमेरिका में भी लोग हिन्दी में बातचीत करते है। भले ही वे भारत से ही क्यों न गए हो। उन लोगों ने अपनी संस्कृति नही छोड़ी यह बहुत बड़ी बात है। जब उनसे पूछा गया कि पहले और अब की कविता में क्या अंतर आया है। उन्होंने कहा कि पहले साहित्य और मंच एक थे। अब ये अलग-अलग हो गए है। उन्होंने कहा कि पहले कवि सम्मेलन श्रृंगार प्रधान होते थे। समय के बदलाव के साथ-साथ हास्य को लोग पसंद करने लगे है। भौतिकवाद के दौर में हर आम व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान है। इस कारण कवि सम्मेलन में लोग हास्य कविताओं को सुनकर हसना चाहते है। जब उन से पूछा गया कि कवि सम्मेलनों की नीति में आए बदलाव से और अंतर आया है। तो उन्होंने कहा कि परमपरा गत गीतों को नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि कविता एक साधना है। पहले जमाने में कवियों को पेट भरने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था। वर्तमान परिवेश में कवियों को न केवल अच्छा मेहनताना मिलता है बल्कि उन्हे व्यवसाय के दूसरे अवसर भी मिलने लगते है। चेतन ने कहा कि उन्हे इस बात का मलाल है कि कई बार कवि सम्मेलन के मंच से अभद्र भाषा भी निकलती है। यह सब इस कारण होता है कि श्रोताओं की ऐसी शब्दावली को तालियों से समर्थन मिलता है। इसके लिए हम सभी बराबर के दोषी है। उन्होंने कहा कि युवा वर्ग को चाहिए कि हिन्दी को पूरा मान-सम्मान दिलवाने के लिए आगे आए। चेतन ने कहा कि जब-जब देश पर संकट आया है। कवियों ने अपनी व्यवसायिक आकांक्षाएं छोड़कर देश को एकता के सूत्र में बांधने व देश वासियों को संघर्ष के लिए प्रोत्साहित करने का काम किया है। कारगिल संघर्ष के दौरान कवियों ने पूरे देश में घूम-घूम कर देश वासियों को ओज व वीर रस की रचनाएं सुना कर संघर्ष के प्रोत्साहित किया।

अजय सैनी

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

Hindi_USA saraahaniiya kaam kara rahii hai.

Suyash Suprabh said...

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि अमेरिका में कुछ लोग हिंदी के प्रति समर्पित हैं।