दिनाँक 6 जून को बार्षिक रथ यात्रा के उपलक्ष्य में पीतमपुरा,
दिल्ली के जैन मंदिर में उपाध्याय गुप्ति सागर जी के पावन
सानिध्य में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया
प्रस्तुत कवि सम्मेलन की एक झलक…………
मंदिरो में गूंजते है पुण्य स्वर आरती के।
मस्जिदों में होती तब पावन अजान है॥
शुभ हो जाता प्रभात गिरजा की घंटियों से।
गुरुद्वारे देते गुरुओं का दिव्य ज्ञान है॥
- कवि कलाम भारती
बहुत होंगे जमाने में कटारों - तीर के वंशज
कहीं तकदीर के बेटे कही शमशीर के वंशज
वो जिनकी आँख में आँसू पले औरों की पीड़ा के
सही अर्थों में वे ही हैं मेरे महावीर के वंशज
- कवि चिराग जैन
एक नदी हूँ मगर जी रही प्यास हूँ
स्नेह का दीप हूं एक अरदास हूँ
मेरे आँचल में है हर खुशी हर घड़ी
यूं तो जानती हूं मै फिर भी संत्रास हूं
- कवियित्री ॠतु गोयल
गुरु पे जिसको भी सच्चा यकीन होता है,
उसी का ख्वाब सच्चा और हसीन होता है।
गुरु के जलवों की इससे क्या बड़ी बात कहूँ,
हर मुसीबत के हल की वो मशीन होता है।
- कवि शहनाज हिन्दुस्तानी
तोड़ दे अब जाति और धर्म की मचान को
भूल जा चाहे अभी तू, गीता और कुरान को
बँट चुकी है ये धरती, आज टुकडों में बहुत
धर्म तू बना ले अपना, पूरे आसमान को,
- कवि बागी चाचा
मेरी डूबती इस कश्ती को किनारा मिल जायेगा।
गर गुरुवर तेरे चरणों में सहारा मिल जायेगा॥
- कवि रमन जैन
आचार्य मानतुंग का जो मान रखा आदीप्रभु
प्रार्थना ये करता हूं आपके चरण में
सत्य का पुजारी रहूं दीजिए आशीष मुझे
घूमता रहूं मैं चाहे नगर या वन में
भक्ताम्बर जी की रचना हुई तो देखो
ताले खुल खुल गिरे इक इक क्षण में
आपकी ये वन्दना का पाठ करूं रोज रोज
लीजिए मुझे भी प्रभु अपनी शरण में
- कवि राजेश चेतन
Sunday, June 7, 2009
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2 comments:
badhaai !
badhaai !
बहुत खूब जमाया है आपने सम्मेलन।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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