
लौह पुरुष मतवाला था
भारत का रखवाला था
गद्दारों की छाती में
गडने वाला भाला था
सब सूबों रजवाडों को
एक सूत्र में ढाला था
राजनीति नभ मंडल में
वो नक्षत्र निराला था
उस लोहे ने जिसे छुआ
इक पारस कर डाला था
पल में एक हलाहल था
पल में अमृत हाला था
काश्मीर का ही उससे
क्योंकर पडा ना पाला था

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