Tuesday, October 21, 2008

सपनों का सच

सपनों का अपना संसार है। बचपन की ये घटना मैं कभी नहीं भूलता हूँ, मेरे पिताजी भिवानी टेक्सटाइल मिल में कार्यरत थे अचानक एक दिन उनका युवा साथी एक दुर्घटना में मारा गया पिताजी क्योंकि मजदूर यूनियन से जुड़े होने के कारण उन्होने अपने समस्त साथियों से इस परिवार के लिए अपने एक दिन के वेतन का सहयोग करने को कहा और इस शोकाकुल परिवार के लिए एक राहत राशी जुटाने में सफल रहे। रात्रि को यह युवा जो दुर्घटना में अपना जीवन समाप्त कर चुका था, पिताजी को स्वपन में दिखाई दिया तथा उसने सट्टे का एक नम्बर पिताजी को बताया तथा उस पर पैसा लगाने का सुझाव दिया। पिताजी इस विषय में कुछ नहीं जानते थे अतः उन्होने अपने मित्र श्री गिरधारीलाल जी से इस स्वपन की चर्चा की। गिरधारीलाल जी ने और पिताजी ने कुछ राशी इस सट्टे के नम्बर पर लगाई और परिवार में सभी आश्चर्यचकित थे कि वही नम्बर उस दिन सट्टे में लगा था। मैं नहीं जानता इस घटना में क्या सच्चाई है परन्तु सपनों की एक दुनिया तो है। वास्तव में जिस प्रकार हमारा हृदय कभी आराम नहीं करता उसी प्रकार हमारा मस्तिष्क भी आराम नहीं करता। निद्रा की अवस्था में भी मस्तिष्क अपना कार्य करता रहता है अतः हम इस प्रक्रिया के कारण नींद में स्वपन देखते रहते हैं। जैन धर्म, बुद्ध धर्म, सनातन धर्म तथा विश्व के अनेक धर्मों में सपनों के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। टेंशन फ्री के इस अंक में सपनों में ही आपको विस्तृत सामग्री पढ़ने को मिल रही है, सपने कैसे भी हो लेकिन मैं तो ये कहूँगा सपने लेते रहिए क्योंकि सपने ही तरक्की के नए रास्ते खोलते हैं।

1 comment:

मोहन वशिष्‍ठ said...

चेतन जी एक कहावत है ना कि कर भला हो भला आपके पिताजी ने उस दोस्‍त के परिवार के ऊपर जो उपकार किया उस उपकार को वह दोस्‍त ऊपर जाकर भी नहीं भूला और उसने अपना कर्तव्‍य निभाया चाहे किस तरह से भी तो आपकी पोस्‍ट से हमें भी शिक्षा मिलती है कि जिसकी जितनी हो सके मदद करें चाहे वो आर्थिक सामाजिक चाहे किसी तरह से भी हो उसका अच्‍छा परिणाम मिलता ही है एक ज्ञानवर्धक पोस्‍ट और आपके अपने मन के भाव हमें पढवाने के लिए शुक्रिया