Sunday, August 17, 2008

राष्ट्रभाषा हिन्दी

जैसे अंग्रेजी ही सबकुछ इसके बिना नहीं कुछ जैसे
चीन, रूस, जापान, जर्मनी, फिर सबसे आगे है कैसे
छोटे-छोटे देश तलक भी अपनी भाषा बोल रहे हैं
एक अभागे हम है ऐसे हिन्दी को कम तोल रहे हैं
सौ करोड़ की इस भाषा का दुनिया कब सम्मान करेंगी
कब भारत की गली-गली से अंग्रेजी प्रस्थान करेंगी
हम अंग्रेजी को तज देंगें आओ यह संकल्प उठाये
हिन्द निवासी हिन्दी वालों आओ हिन्दी को अपनाये

14 सितम्बर भारत में हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है, सरकारी संस्थानों में हिन्दी के अनेक औपचारिक आयोजन दिखाई पड़ते हैं और उसके बाद वर्ष भर सारा कामकाज अंग्रेजी में ही किया जाता है। चीनी के बाद विश्व की दूसरी भाषा हिन्दी होने के बाद भी हिन्दी भाषी हीन भावना के शिकार है। हम हिन्दी फिल्में देखते हैं, टी वी पर हिन्दी कार्यक्रम देखते हैं, घर में हिन्दी बोलते हैं पर ना जाने कार्यालय व सामान्य काम काज में हम क्यों अंग्रेज हो जाते हैं। मुझे लगता है सदियों की गुलामी से हमारी मानसिकता भी गुलाम हो गई है। मैंने कभी अपनी कविता में कहा था

अंग्रेजों के पराधीन थे
अपनो के अधीन हैं
यानि हम स्वतन्त्र नहीं स्वाधीन है
स्वतन्त्र यानि अपना तन्त्र
या कह सकते है गांधी का रामराज
अंग्रेजी खाना, अंग्रेजी पीना,
अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी विचार,
अंग्रेजी मानसिकता,
कैसे कहे कि आ गई स्वतन्त्रता
अंग्रेजी को छोड़ जिस दिन गूंजेगा
हिन्दुस्तानी मन्त्र
उस दिन हम होंगे स्वतन्त्र

आजादी के 61 साल के बाद भी भारत में हिन्दी अपने राष्ट्रभाषा के स्थान के लिए संघर्ष करती दिखाई पड़ रही है। लगता है हिन्दी को अपना अधिकार दिलाने के लिए या यूं कहूं इंडिया को हिन्दुस्तान बनाने के लिए एक और आन्दोलन की आवश्यकता है और इस आन्दोलन में हर हिन्दुस्तानी को अपने सामर्थ्य के अनुसार योगदान करना चाहिए। पिछले एक वर्ष से टेंशन फ्री हिन्दी पत्रिका इस आन्दोलन में एक गिलहरी के रूप में अपना योगदान दे रही है। आज के दौर में हिन्दी पत्रिका निकालना कोई आसान नहीं है परन्तु आप सबने जो तन मन धन से सहयोग दिया है उसके प्रति आभार व्यक्त करते हुए हमारा ये संकल्प है कि हिन्दी के ध्वज को कभी भी झुकने नहीं देंगे। शिव ओम अम्बर की पंक्तियों में अपने संकल्प को दोहराना मुझे अच्छा लगता है

या तो बदचलन हवाओं का रुख मोड़ देंगे हम
या खुद को वाणी पुत्र कहना छोड़ देंगे हम
जिस दिन भी हिचकिचाऐंगें लिखने से हकीकत
कागज को फाड़ देंगे कलम को तोड़ देंगे हम

1 comment:

Unknown said...

हिन्दी के विरुद्ध बहुतेरे षड्यंत्र चल रहे है । सप्रग सरकार मे वामपंथियो और सोनिया के चमचो ने हिन्दी का बेडा गर्क करने मे कोई कसर बांकी नही रखा है । देखते जाईए आगे आगे होता है क्या ???