Wednesday, April 2, 2008

मृत्यु भयभीत नहीं करती जब हाथ तिरंगा होता है - प्रताप फौजदार

दिनांक 30 मार्च 08 को भारत विकास परिषद की शिवाजी शाखा द्वारा शहीद भगत सिंह बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राजेश चेतन द्वारा संपादित पुस्तक "रंग दे बसंती" का लोकार्पण भी किया गया। इस समारोह में अतिथि के रूप में विधायक श्री जय भगवान अग्रवाल, विधायक श्री कुलवंत राणा, पार्षद श्री हरीश अवस्थी, पार्षद श्री बिजेन्द्र गुप्ता, पार्षद श्री विजय प्रकाश पाण्डेय, पार्षद श्रीमती निर्मला ठाकुर, श्री आई डी ओझा-राष्ट्रीय अध्यक्ष भारत विकास परिषद और श्री जगदीश मित्तल उपस्थित थे। राजेश चेतन के संचालन में रात्रि लगभग दो बजे तक हजारों लोगों ने कविता का रसास्वादन किया।

जिस पानी के पानी की भी पानीदार कहानी है।
यह पानी हिन्दुस्तानी है, यह पानी हिन्दुस्तानी है॥
प्रो॰ राजवीर सिंह 'क्रान्तिकारी', गाजियाबाद


सुण ले ध्यान तै बात मेरी
हे जननी हे मात मेरी
तू विरथा नीर बहाईये ना
भाई नै भेज दिये तू आईये ना
जै मेरी लाश देख कै तू जो धीरज खो पड़ी
सारी दुनियां के कहगी भगत सिंह की मां रो पड़ी
जगबीर राठी, रोहतक


इन क्वारों मतवारों का औसत और बढ़ेगा,
फ्यूचर में कन्याओं का घोर अकाल पड़ेगा।
इसलिये वक्त से पहले बेटी को मत मारो,
देवदास तो होंगें पर नहीं मिलेगी पारो।
मेरा अन्दाजा-सही अन्दाजा
चाहे जब आजा-आजा-आजा
पदम अलबेला, हाथरस


मैंने पूछा झूम झूम फाँसी कैसे चढ़ जाते थे।
नंगे पैर दहकते अंगारों पर भी बढ़ जाते थे॥
बोले देश भक्ति लौ पर बलिदान पतंगा होता है।
मृत्यु भयभीत नहीं करती जब हाथ तिरंगा होता है॥
सरदार प्रताप फौजदार, आगरा


देश के नाम जो गोलियां खा गए
थे धरा के लिए पर गगन पा गए
हैं हमारे उन्हें कोटि-कोटि नमन
सांस की लय पे जय हिन्द जो गा गए
मधु मोहिनी उपाध्याय, नोएडा




खेत खेत बन्दूकों की खेती करने की ठानी
आजादी का मंत्र सारे भारत में बो गया
एसेम्बली में बम फेंक इंकलाब बोल उठा
रंग दे बसन्ती गीत गाते गाते सो गया
गांधी जी की बकरी की रस्सी तो दिखाई गई
भगत की फांसी वाला फंदा कही खो गया
आजादी के दीवाने को पावन नमन मेरा
बलिदानी कहानी भगत सिंह हो गया
राजेश चेतन, दिल्ली

1 comment:

Kavi Kulwant said...

साहस संकल्प से साध सिद्धि
विजयी समर में शूर बुद्धि
दृढ़ निश्चय उन्माद प्रवृद्धि
जवाला सी कर चिंतन शुद्धि ।...

कायरता की पहचान भीति है
अंगार शूरता की प्रवृत्ति है
शोषित जीवन एक विकृति है
नही मृत्यु की पुनरावृत्ति है ।...
कवि कुलवंत कार्यक्र्म के लिए हार्दिक बधाई...