Friday, March 14, 2008

दादूद्वारा कवि सम्मेलन

दिनांक 13 मार्च 2008 को नरेना, दादूद्वारा में सन्त कवि दादू दयाल का 464वां प्रकटोत्सव आचार्य श्री गोपाल दास जी महाराज के सान्निध्य में भारत के कोने-कोने से पधारे हजारों दादू भक्तों के मध्य एक विशाल कवि सम्मेलन के रूप में मनाया गया। इस कवि सम्मेलन का संयोजन आचार्य जैतराम भवन में श्री अशोक बुवानी वाला व कमलेश चौधरी के प्रयासों से संपन्न हुआ। इस अवसर पर उपस्थित कवियों ने कवि राजेश चेतन के संचालन में काव्य पाठ किया -

नाज मुझे खुद पर हो रहा है आज पिया,
मेरा ये सिंदूर भारती के काम आया है।
पिता की चिता को आग भाई बेटे देते आये,
पर ये सम्मान आज पत्नी ने पाया है।
आपका ये बलिदान आन बान और शान,
मेरी कोख के लिये सबक बन आया है।
सात महीने का गर्भ झूम-झूम कह रहा,
आज मेरे पापा ने तिरंगा लहराया है।
शहनाज हिन्दुस्तानी, अजमेर


जहाँ शीश ले निज करतल पर युद्ध किया करते हैं।
और मान के धनी प्राण धन वार दिया करते हैं॥
राजस्थानी धरा शोर्य की कथा कहा करती हैं।
पानी कम है मगर रक्त की नदी बहा करती है॥
विनीत चौहान, अलवर




सन्त दादू दयाल कै धाम पै आकै देख।
सुख है कितना नाम म्ह गुनगुना कै देख॥
सब क्लेश कट जावैंगे मन मुर्ख नादान।
जिह्वा तै अपणी दादू की वाणी गाकै देख॥
वी एम बेचैन, भिवानी



आप हँसते है लेकिन मेरा ख्याल है।
आप के भी घरों का यही हाल है॥
पत्नी के आगे गिड़गिड़ाया न हो।
बोलिये कौन वो माई का लाल है॥
पदम अलबेला, हाथरस




वक्त पूछता है सवाल मजहब के ठेकेदारों से।
मजहब है क्या देश जलाना नफरत के अंगारों से॥
यूसुफ भारद्वाज, दिल्ली






कोई जाति कोई पंथ विशेष नहीं
प्रांतवाद का भी कोई परिवेश नहीं
राज ठाकरे को जाकर ये समझाओ
मुंबई भारत का हिस्सा है देश नहीं
राजेश चेतन, दिल्ली

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