अँग्रेजी सन को अपनाया
विक्रम संवत भुला दिया है
अपनी संस्कृति, अपना गौरव
हमने सब कुछ लुटा दया है॥
जनवरी-फरवरी अक्षर-अक्षर
बच्चों को हम रटवाते हैं
मास कौन से हैं संवत के
किस क्रम से आते-जाते हैं
व्रत, त्यौहार सभी अपने हम
संवत के अनुसार मनाते
पर जब संवतसर आता है
घर-आँगन क्यों नहीं सजाते
माना तन की पराधीनता
की बेड़ी तो टूट गई है
भारत के मन की आज़ादी
लेकिन पीछे छूट गई है
सत्य सनातन पुरखों वाला
वैज्ञानिक संवत अपना है
क्यों ढोते हम अँग्रेजी को
जो दुष्फलदाई सपना है
अपने आँगन की तुलसी को,
अपने हाथों जला दिया है
अपनी संस्कृति,अपना गौरव,
हमने सब कुछ लुटा दिया है ॥
सर्वश्रेष्ठ है संवत अपना
हमको इसका ज्ञान नहीं हैं
पूर्ण प्रमाणिक गणना इसकी
हमको इसका ध्यान नहीं हैं
संवत के दिन ब्रह्माजी ने
इस वसुधा को जन्म दिया था
अवध के सिंहासन पर प्रभु का
सबने मिलकर तिलक किया था
आर्य समाजी गौरव की भी
नींव यहीं संवत का दिन है
हेडगेवार औ’ झूले लाल की
जन्म-तिथि संवत का दिन है
नवसंवतसर के पहले दिन
शुभ नव्रात्रि आगमन होता
दुर्गा-पूजा, शक्ति-अर्चना
में तन-मन-धन अर्पण होता
पश्चिम के वैभव के आगे,
क्यों हमने सर झुका दिया है ?
अपनी संस्कृति अपना गौरव,
हमने सब कुछ लुटा दिया है ॥
Tuesday, January 29, 2008
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