लाज तुम्हारे हाथ माँ, क्षमा करो हर भूल
जीवन मेरा धन्य हो यदि पाउँ पग-धूल
यदि पाउँ पग-धूल, लेखनी चलती जाए
दो मुझको वरदान यह जीवन सफल कहाए
मीरा,सूर, कबीर के, शीश धरा ज्यों ताज
मैं भी सुत हूँ आपका, रखना मेरी लाज
रखना मेरी लाज, रहूँ मैं सदा ही ‘चेतन’
काव्य-पुष्प नव नित्य करुँ माँ तुम्हें समर्पण
Tuesday, January 29, 2008
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