हंसते खिलते फूलों को ही जग की आंखो का प्यार मिला
अंधियारे में जलने वाले हर दीपक को सत्कार मिला
जो अपने से बाहर आया उसको सारा संसार मिला
जिसने मरना सीखा उसको ही जीने का अधिकार मिला
बचपन में ही डा. कुंअर बेचैन की उपरोक्त पंक्तियों ने मुझे प्रभावित किया, आरम्भ से ही अपने शहर भिवानी के कवि सम्मेलनों में मुझे उनको सुनने का सौभाग्य मिला । स्कूल कालेज की कविता प्रतियोगिताओं मे उनके गीतों को प्रस्तुत करने का भी अवसर मिला लेकिन उनके साथ मंच पर कविता पढने व लम्बी काव्य यात्रायें करने का अवसर मिलेगा, ये तो मैने सपनें मे भी नहीं सोचा था ।
मुझे याद आता है दिल्ली में दीवाली मेले का वह कवि सम्मेलन, झूलों व माइक के शोर के कारण सभी कवि परेशान थे, डाक्टर साहब समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे और मैं संचालन दायित्व के लिये संघर्ष कर रहा था, जब पहले दो कवि अव्यवस्था की भेंट चढ गये तो क्रोध में आयोजकों के लिये मैने कुछ कठोर शब्दों का प्रयोग किया तो डाक्टर साहब ने मुझे अपने पास बुलाकर कहा हंसते खिलते फूलों को ही…, कविता जो सुनता है सुनाओ नहीं तो उपस्थिति लगाओ और चलो, मुझे इक मंत्र मिल गया और हम सब ने हंसते हंसते कार्यक्रम सम्पन्न किया ।
Tuesday, July 17, 2007
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