Thursday, May 27, 2021

हर सप्ताह 8.0

 लौह पुरुष मतवाला था
भारत का रखवाला था

गद्दारों की छाती में
गडने वाला भाला था

सब सूबों रजवाडों को
एक सूत्र में ढाला था

राजनीति नभ मंडल में
वो नक्षत्र निराला था

उस लोहे ने जिसे छुआ
इक पारस कर डाला था

पल में एक हलाहल था
पल में अमृत प्याला था

काश्मीर का ही उससे
क्योंकर पडा ना पाला था

उसको रास नहीं आया
मन जिसका भी काला था

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