Saturday, November 21, 2009

दस्तक नई पीढ़ी की



हौसले टूट जाते हैं, हस्तियाँ टूट जाती हैं
समंदर में लहर उठती है कश्तियाँ टूट जाती हैं
जिस रात ख़याल आता है सरकार को दिल्ली लंदन बनेगी
उसी सुबह शहर की कई झुग्गियाँ टूट जाती हैं

-महेन्द्र प्रजापति




परिभाषा लोकतंत्र वाली न समझ पाए
आज़ादी तो मिली किन्तु रास नहीं आई है
खेलते चौराहों पर सत्ता का घिनौना खेल
देख धृष्टता को माँ की आँख भर आई है
मातृभूमि रक्षा हेतु जिन्होंने कटाए शीश
उन्हीं के समक्ष होने लगी हाथापाई है
हाए रे विधाता पृथ्वीराज का कहाँ है शौर्य
देख दृश्य अकुलाया चन्द्रवरदाई है

-विनय शुक्ल



कठिन डगर है कठिन समय है फिर भी चलना
पाँव में छाले हैं तो क्या, आगे बढ़ना है
शब्दों को हथियार बना मै लड़ती जाऊंगी
प्रियतम तेरे प्यार की कविता पढ़ती जाऊंगी

- शैलजा सिंह




लेखन की ताकत से हरदम नया युद्ध लड़ने वालो
भारत माँ को आज बचा राष्ट्र हेतु मरने वालो
यही नींद में बड़बड़ करता मैं रोता ही जाता था
राष्ट्र भ्रमण का अंतिम सपना अब तो सोता जाता था

- सत्येन्द्र सत्यार्थी



कल अचानक
सूर्य भगवान से मुलाकात हुई
चूँकि पृथ्वी घूम रही थी
इसलिए चलते-चलते ही बात हुई
मैंने पूछा - 'हे सूर्यदेव!
आकाश में घूमने का क्या आपका एक ही रुटीन है
कभी बोरियत फील करो
तो नीचे आ जाना
हमारे पास बहुत बड़ी जमीन है,

-अनिल गोयल



यूँ ही उदास है दिल बेकरार थोड़ी है
मुझे किसी का कोई इंतजार थोड़ी है
मुझे निंद न आए उसे भी चैन न हो
हमारे बीच भला इतना प्यार थोड़ी है

- जतिन्दर परवाज

1 comment:

Randhir Singh Suman said...

जिस रात ख़याल आता है सरकार को दिल्ली लंदन बनेगी
उसी सुबह शहर की कई झुग्गियाँ टूट जाती हैं
nice