Thursday, July 24, 2008

वर्तमान संदर्भ में आजादी

भारत 1947 में एक लम्बे संघर्ष के बाद आजाद हुआ। आजादी के आन्दोलन के समय किसी कवि की ये पंक्तियां याद आती है -

आजादी का मूल्य प्राण है देखें कौन चुकाता है
देखें कौन सुमन शैय्या तज कंटक पथ अपनाता है
कष्ट कंटको में पड़कर के जीवन पट झीने होगे
कालकुट के विषमय प्याले प्रेम सहित पीने होगे
वहीं वीर अब बढ़े जिसे हंस-हंसकर मरना आता है
आजादी का मूल्य प्राण है देखें कौन चुकाता है


कवि कि इन पंक्तियों में आजादी की महता को स्पष्ट किया गया है। आजादी बलिदानों से हमको मिली परन्तु आज की पीढ़ी उन बलिदानों को भुलती जा रही है। आज की पीढ़ी शाहरुख खान को जानती है परन्तु शहीदों को नहीं। रानी मुखर्जी को जानती है परन्तु झांसी की रानी को नहीं। यदा कदा 15 अगस्त, 26 जनवरी के दिन कुछ राष्ट्र भक्ति के गाने गाकर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। मैं सारा दोष आम जनता को ही नहीं देना चाहता, विश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में जो नोट लहराये जा रहे थे वह तथाकथित लोकतन्त्र के मुंह पर तमाचा थे। क्या इन्ही नेताओं के लिए शहीदों ने अपना बलिदान दिया था ? दोष नेताओं को भी क्या दे क्योंकि उनको चुनने वाले तो हम ही हैं। हम अपने बेटा बेटी का रिश्ता बड़ा देखभाल कर करते हैं पर देश के नेताओं का चुनाव करते हुए हम जरा भी विचार नहीं करते। नई पीढ़ी के लिए आजादी का मतलब इट, ड्रिंक एण्ड बी मेरी ही हो गया है। फैशन की बढ़ती दौड़, इंटरनेट का जहर, फिल्मी अश्लीलता, टेलीविजन के परिवार तोड़ु सीरियल आने वाली पीढ़ी को भ्रमित कर रहे हैं। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, आजादी का मतलब कभी हुआ करता था देश, समाज और परिवार के लिए जीना और आज है पर्सनल लाइफ। आप सबको स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएं देते हुए मैं अपनी कविता की पंक्तियां याद करता हूं -

क्या कीमत है आजादी की
हमने कब यह जाना हैं
अधिकारों की ही चिन्ता है
फर्ज कहां पहचाना है


स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर यदि हम अपना विशलेषण करें और अधिकारों के प्रति सजग रहते हुए अपने कर्तव्य का पालन करने का संकल्प ले तो मेरे विचार से यह स्वतन्त्रता दिवस मनाने का सार्थक प्रयास होगा। अनुव्रत अनुशास्ता आचार्य तुलसी की ये पंक्तियां इस अवसर पर सटीक लगती है -

सुधरे व्यक्ति समाज व्यक्ति से राष्ट्र स्वयं सुधरेगा

1 comment:

Arun Mittal "Adbhut" said...

Bahut achacha lekh. Sadhuvaad.......