Tuesday, July 17, 2007
शव्दों के जादूगर डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी
एक ओर देश की सेना कारगिल में शत्रुओं से जूझ रही थी तो दूसरी ओर देश की जनता वर्ल्ड कप क्रिकेट मे डूबी थी तिरंगे मे लिपट कर जवानो के शव आ रहे थे कि एक दिन कुछ मित्रों के साथ तत्कालीन उपप्रधान मंत्री व गृहमंत्री श्री लाल कृष्ण अडवाणी से मिलने का अवसर मिला। अडवाणी जी के सुझाव पर जन जागृति हेतु “चुनौती है स्वीकार” शीर्षक से एक कवि सम्मेलन का आयोजन तय हुआ। डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी की अध्यक्षता में श्री सोम ठाकुर, डा॰ गोविन्द व्यास, डा॰ कुँअर बेचैन, श्री हरिओम पंवार, श्री विनीत चौहान, श्री नरेश शांडिल्य व मुझे भी कविता पाठ का सौभाग्य मिला। इन्द्र देव की उस दिन अपार कृपा थी दिल्ली में सब तरफ पानी ही पानी दिखाई पड रहा था ऐसे मौसम मे दिल्ली के फिक्की सभागार में क्षमता से दूगने लोग उपस्थित देखकर आश्चर्य हुआ। अडवाणी जी ने उद्घाटन अवसर पर कहा युद्ध चल रहा है अतः कवियों से क्षमा चाहता हूँ कुछ समय ही आपके मध्य रहूँगा लेकिन कविता का जादू उपप्रधान मंत्री के सर चढने लगा और लगातार चार घंटे वे कवियों को सुनते रहे। समापन की बेला मे अध्यक्षीय काव्य पाठ के लिये डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी की आशु काव्य धारा पर जन समुदाय उमड़ रहा था और फिर जैसे ही डा॰ अवस्थी ने शहीदों के सम्मान में कविता सुनाई जनता के साथ साथ देश के गृहमंत्री की आँखों में भी अश्रुधारा निकली जनता के मध्य बैठे श्री आडवाणी जी ने अपने स्थान पर खडे होकर डा॰ अवस्थी से कहा कि मुझे भी कुछ कहना है और फिर अडवाणी जी ने जो कहा उससे डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी की शब्द शक्ति को समझा जा सकता है। गृहमंत्री ने कहा – डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी जी मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि चाहे जो हो एक इंच भूमि भी दुश्मन को नहीं जायेगी। ऐसे शब्द शिल्पी डा॰ बृजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धांजलि।
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