Tuesday, May 13, 2008

नशा


"नशा शराब में होता तो नाचती बोतल" सुपरस्टार अमिताभ ने ये गाना क्या गाया कि शराब पीने वालों को ब्रांड अम्बेसडर मिला गया। फिल्मों का भारतीय युवा मन पर बहुत प्रभाव है। शाहरुख, सलमान, ऐश्वर्य, माधुरी जैसा पहनते हैं, चलते हैं, युवा वर्ग उनको कापी करने का प्रयास करता है। जिन्स शर्ट पहने फिल्मी नायक के हाथ में शराब सिगरेट देखकर कालेज जाने वाला युवा फैशन के चक्कर में सिगरेट से शुरुआत करते करते बीयर और फिर शराब तक पहुंच जाता है।

फिल्मों के साथ साथ कैरियर भी एक बड़ा प्रश्नचिन्ह बनकर खड़ा है इस नशे की आदत के पीछे महानगरों में आजकल काल सेन्टर बढते जा रहे हैं। रात भर टेलीफोन व कम्पयूटर से जुझने वाले युवक युवती एक दूसरे को देख देखकर धुम्रपान की लत का शिकार हो जाते हैं। दिल्ली से गुड़गांव के रास्ते में चलने वाली काल सेन्टर की टैक्सियों में कभी झांक कर देखना, आपको सिगरेट पीते युवक युवती बहुत बड़ी संख्या में दिखाई पड़ेंगे।

विश्व में भारत युवाओं का देश है और युवा नशे के रास्ते पर चल रहा है अतः तम्बाकू के सेवन में विश्व में हमारा तीसरा स्थान है और ये और अधिक चिन्ता का विषय है कि आज फैशन की चकाचौंध में युवा लड़कियां भी नशे की आदत का शिकार होती जा रही हैं, जो भारतीय समाज के लिये अत्यंत घातक है। मां हमारे यहां परिवार की रीढ है और यदि मां ही नशे का शिकार हो गई तो आने वाली पीढी को नशे से बचाना बहुत कठिन होगा।

गत दो दशकों से एक विचित्र वातावरण देश में देखा जा सकता है संतों के प्रवचन बढ रहे हैं, धार्मिक चैनल बढ रहे हैं, तीर्थ यात्रा बढ रही है, धर्म स्थानों में भीड़ बढ रही है, भगवती जागरण बढ रहे हैं और ये सब बढने के साथ साथ नशे की आदत भी बढती जा रही है। समझ नहीं आ रहा कि धार्मिक संस्कार भी क्या नशे की आदत को रोकने में असमर्थ हैं?

मुझे लगता है आवश्यकता है एक रोल माडल की। बाबा रामदेव के शिविरों से योग का एक ऐसा वातावरण बना कि फिल्मी दुनियाँ के लोग भी बाबा रामदेव के शिविर में दिखाई देने लगे। मुझे लगता है आज आवश्यकता है कि जो युवा मन के लिये सेलिब्रिटी हैं वे भारत की युवा पीढी के सामने अपने स्वयं के जीवन का एक आदर्श प्रस्तुत करें तो एक सीमा तक इस नशे की आदत को कम किया जा सकता है। एक कवि होने के नाते मैं तो यहीं कह सकता हूं -

मदिरा नाही सोमरस, ये कष्टों की खान
बोतल छोटी है मगर, ले लेती है जान

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