
कितना दर्द सहा होगा आजादी के मतवालों ने
जिनको भारत मां के खातिर त्याग दिया घरवालों ने
कभी निहत्थे हाथों से नाखून उखाड़ें जाते थे
कभी चीर कर चमड़ी उसमें नमक मिर्च भुरकाते थे
जब ना दर्द सहा जाता तो वन्दे मातरम गाते थे
ऐसे में निर्ममता से कोड़े बरसाये जाते थे
माना उनको मौत का अपनी अन्देशा हो जाता था
फिर भी मरते-मरते लब पे वन्दे मातरम आता था॥
शहनाज हिन्दुस्तानी, अजमेर

हृदय की तपती भठ्ठी में शब्दों की धातु गलती है
हास्य की गर्मी पड़ती है तो काव्य की बर्फ पिघलती है
मेरी हास्य की पुड़िया पर क्यूं नाराज हो दोस्त
जब हास्य ढोल बजाता है तब कविता रस्सी पर चलती है॥
जगबीर राठी, रोहतक

मुफ्त में हम तुम्हे क्या बताये
किस कदर चोट खाये हुए है
वोट ने हमको मारा है और हम
लीड़रों के सताये हुए है॥
एकेश पार्थ, जयपुर

मन के मरुथल में भी अबके बरसात हो
हर तरफ आग है प्यार की बात हो
भर सके रोशनी ज़िन्दगी में सदा
इस तरह की कोई चांदनी रात हो
ॠतु गोयल, दिल्ली

कारगिल के शहीद की, क्या बची साख ?
विधवा घूमती है, पाने को पाँच लाख
क्रिकेट का धोनी छः करोड़ में बिकता है
देश का चरित्र अजीबोगरीब दिखता है
दोस्तों कोई कैसे राष्ट्र उत्थान के गीत गाए ………
पीढ़ी तय करेगी कि क्रिकेट खेले या सीमा पर जाए॥
ओमव्यास 'ओम', उज्जैन

मैनै कहा,चेहरे से हम काले हैं
पर दिल में हमारे उजाले हैं
और रही तुम्हारे चेहरे की लाली
तो वह भी तुम्हारी नही
पराई हैं
तुमने दुनिया के लोगो से चुराई हैं
दुनिया का रक्त बहाकर
तुम्हारा चेहरा हो गया लाल
अब काहे को ठोक रहे हो ताल
लूटा है हमारा ही माल
गौरे चेहरे पर ज्यादा मत इतराओं
पहले आदमी बन कर दिखाओं
राजेश चेतन, दिल्ली

जो भी कौम वतन की खातिर मिटने को तैयार नहीं
उसकी सन्तति को आजादी जीने का अधिकार नहीं
डा॰ हरि ओम पंवार, मेरठ

कब गालिब की गजलों से, लड़ती तुलसी की चौपाई
गीता को गाली देने बोलो, किस दिन कुरान आई
मस्जिद की मीनारे, किस दिन कहो कलश से टकराई
किस मजहब में लिखा कि, आपस में लड़ मर जाओ भाई
सत्यनारायण सत्तन, इन्दौर

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