Saturday, February 2, 2008

कृष्णा

कृष्णा

कान्हा तेरी बांसुरी ने किया है कमाल ऐसा
झूमते हैं नर नार झूमती है गैया
गोप-गोपियों के संग नाचत है लाल जब
मात यशोदा भी लेत उनकी बलैया
घर घर घूम घूम माखन चुराने वाला
बोल रहा है चोरी नही की है मेरी मैया
सारा ब्रज मण्डल भी झूम झूम बोलता है
धन धन धन धन दाऊ जी के भैया

1 comment:

VPM said...

अब ना भुलूँगा तुझे; शपथ फिर लेता हूँ मैं;
हरघड़ी, हरपल, रहक्षण; अब स्मरण करता हूँ तुझे मैं;
अब क्षमा कर दो तो मुझे; कॄपा कर दो तो जरा;
अग्य़ान मेरा , अब मिटा दे तो जरा;
गले लगा ले मुझे; देर ना कर, अब तो जरा;
दास हूँ मैं तेरा, सेवक हूँ मैं तेरा;
यहाँ कुछ भी ना मेरा, सबकुछ है तेरा;
यह तन है ना मेरा, धन है ना मेरा;
सारा जग है तेरा, मैं तुझी से हूँ ।
हे नाथ! अब रुक जा, ठहर जा तो जरा;
गड़ीभर, विश्राम्, ले तो जरा;
तेरा नाम ले लूँ तो जरा; तुझे जप लूँ तो जरा;
तेरा भजन, गीत, गुण, गा लूँ तो जरा;
सीने से तेरा, लग लूँ तो जरा;
मन-मंदिर में, रख लेने दो, तो जरा;
फिर अपना पट, बन्दकर, लेना तूँ सदा;
मुझे, जरा भी ना, दुख-दर्द होगा;
रत्तीभर ना, क्लेष होगा;
दर्दे दिल की व्यथा, सुन ले तो जरा;
पता मंजिल की तो बता, ढुढूँ उसे मैं कहाँ?
थक गया हूँ मैं, अब धैर्य खो रहा हूँ मैं।