Thursday, February 7, 2008

इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय का कवि सम्मेलन



दिनांक 07 फरवरी 2008 को दिल्ली के गुरु गोविन्द विश्वविद्यालय प्रांगण में "अनुगूंज" नाम से एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में उपकुलपति प्रो॰ के के अग्रवाल, महाराजा अग्रसेन कालेज के वाइस चेयरमैन श्री जगदीश मित्तल, कार्यक्रम के संयोजक श्री योगेश सिंह उपस्थित थे। राजेश चेतन के संचालन में कवियों ने देर रात तक श्रोताओं को बांधे रखा। कवि सम्मेलन में प्रस्तुत की गई कविताओं की कुछ बानगी इस प्रकार है -



मेरे इस सहिष्णु भारत में, किसी धर्म पर रोक नहीं।
और किसी के पूजा गृह, पूजा पद्धति पर टोक नहीं॥
धर्म एक जीवन पद्धति है, जिस पर मानव चलते हैं।
केवल धर्म बदल देने से, पुरखें नहीं बदलते हैं॥
प्रताप फौजदार, आगरा



पेट में भूख है,
गले में प्यास है,
सिर में दर्द है,
फिर भी माइक पर डटा है।
कवि, कवि नहीं
मर्द है॥
प्रदीप चौबे, ग्वालियर






हुआ हुक्म जब फांसी का तो भगत सिंह यूं मुस्काया,
बोला माँ अब गले लगा लो मुद्दत में मौका आया,
तख़्ते फांसी कूँच पे जब क़दमों की आहट आती थी,
तो दीवारें भी झूम-झूम कर वन्दे मातरम् गाती थी।
शहनाज "हिन्दुस्तानी", अजमेर



बनेगी बात नई सोच बदल के देखो
झोंपड़ी में रहो पर ख्वाब महल के देखो
खुलेंगी खिड़कियॉ और आसमां अपना होगा
ज़रा हिम्मत करो और घर से निकल के देखो।
डा॰ विष्णु सक्सेना, अलीगढ़



आँसू की उँगलियों में पीडाओं का तरल है।
कागज़ के जिस्म पर ये स्याही नही गरल है॥
सिक्कों से लेखनी का कद कैसे नापियेगा।
लिखना बहुत कठिन है, बिकना बड़ा सरल है॥
कुमार पंकज, मेरठ








दुनिया में कहीं ऐसे पुण्य धाम नहीं थे
भारत की तरह धर्म के आयाम नहीं थे
रावण के खानदान के होंगे वो दोस्तों
जो लोग कह रहे हैं, कभी राम नहीं थे
डा॰ सुनील जोगी, दिल्ली

मैं ये सुनता हूँ कुछ लोग अभी ज़िन्दा हैं।
हाँ मगर ये नहीं मालूम कहाँ रहते हैं॥
पहले रहते थे मकानों में बड़े चैन से लोग।
और अब ज़ेहन में लोगों के मकां रहते हैं॥
सुरेन्द्र "शजर", दिल्ली


जहाँ देश पर न्यौछावर को मचल गया मतवाला खून
कफन बांध कर जहाँ जवानी के माथे पर चढ़े जुनून
मन का चंदन जल आँखों का अक्षत शुद्ध विचार के
संस्कार के फूल पिरोकर हार बनाना प्यार के
जहाँ-जहाँ भी चौक चबूतर मिल जाएं बलिदान के
उन्हे पूजना वो हैं सारे तीरथ हिन्दुस्तान के
चौधरी मदन मोहन "समर", भोपाल


जिसने सबसे पहले सन 57 को संग्राम लिखा
कण-कण मन्दिर इस मिट्टी का, पूजित पावन धाम लिखा
देश प्रेम के बदले दो जन्मों का कारावास मिला
तेल निकाला रस्सी बांटी ऐसा था आवास मिला
वे सावरकर भूल गये हम कैसी ये नादानी है
कुर्बानी पर राजनीति करती आई मनमानी है
सेल्यूलर को शीश झुकालु, बाद में होगा तीरथ धाम
इंकलाब जय जिन्दाबाद, इंकलाब जय जिन्दाबाद
श्रीकान्त "श्री", मेरठ




चंचलता से पांव में, आ जाती है मोच
मन ही मन घबरा रही, मात पिता की सोच
अंजु जैन, गाजियाबाद






इनके प्यार करने के नियम भी हार्ड होते है
इनके दिल के दरवाजे पे अक्सर गार्ड होते है
उन्ही से दिल लगाती है उन्ही पे जां लुटाती है
कि जिनके जेब में दस बीस क्रेडिट कार्ड होते है
डा॰ कीर्ति काले, दिल्ली





गंगा की कल कल सीने में
चंदन सी महक पसीने में
मन में मुरली की मधुर तान
तन पावनता का दिव्य दान
सद संकल्पों के संग धाये
भारत वंशी जग में छाये
गजेन्द्र सोलंकी, दिल्ली



एक से कटाने सवा लाख शत्रुओं के सिर
गुरु गोविन्द ने बनाया पंथ खालसा
पिता और पुत्र सब देश पे शहीद हुए
नहीं रही सुख साधनों की कभी लालसा
जोरावर फतेसिंह दीवारों में चुने गए
जग देखता रहा था क्रूरता का हादसा
चिड़ियों को बाज से लड़ा दिया था गुरुजी ने
मुगलों के सर पे जो छा गया था काल सा
राजेश चेतन, दिल्ली

1 comment:

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

खूब रही!!
हो सके तो रेकार्डिंग भी सुनवा दें.