बहन ने भाई को पुकारा
आ गया
रक्षाबन्धन का त्यौहार दोबारा
फिर वहीं औपचारिकतायें
रेशम का धागा,टीका मिठाई
तुमने भी जेब मे हाथ डाला
रस्म निभाई
हो गया, रक्षाबन्धन
भैया!
ये साधारण से दीखने वाले
रेशम के धागे
धागे नही
रक्षा के बन्धन हैं
और तुम्हारे माथे पर
चमकने वाली ये रोली
रोली नही
भारत की माटी का
पावन चन्दन हैं
बहन की रक्षा का
पावन संकल्प उठाया है तुमने
तुमको बधाई
पर तुम्हारी बहन
तुमको इतनी कमजोर नजर आई ?
माना सीता सावित्री हमारी पहचान हैं
पर अपनी रक्षा करने को हम
रानी झांसी के समान हैं
भैया !
बहन की रक्षा की चिंता छोड, और
अपनी दृष्टि देश की सीमाओ की ओर मोड
जहाँ आस्तीन मे साँप है
पडोसी का अटट्हास है
दुश्मन की ललकार है, और
इतिहास की फटकार है
ब्रहम देश का बिछुडना
पाकिस्तान का कटना
आजाद कश्मीर
मानसरोवर कैलाश की पीर
तीन बीघा का दान
और घर में बैठे
आतंकी शैतान
इसलिये जब तक
देश की सीमाओं पर संकट है भारी
तुम्हारी बहन के भाग्य में
तब तक है लाचारी
क्योंकि, हो सकता हैं
इतिहास अपने को फिर दोहराये
और फिर कोई रावण
सीता को उठाने आये
और फिर हो
धर्म नाम पे, तुम्हारी बहनो पर
अत्याचार
इसलिये समय रहते जागो
आओ, मैं तुम्हारी कलाई पर
रेशम के मुलायम धागे बाँधू
और तुम उन कलाईयो से
देश की सीमाओं पर
रक्षा के संकल्प सूत्र बाँधो ।
Thursday, February 7, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment