Thursday, February 7, 2008

तीन रंग

हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई
एक ट्रक पर सवार
कर रहे थे तिरंगे झण्डे पर विचार
हिन्दु ने कहा -
हम हैं गाँधी के बेटे लायक
अहिंसा के नायक
वन्देमातरम् के गायक
छोड़ चुके हैं केसर की घाटी
क्योंकि हमको प्यारी है भारत की माटी
हम हैं भारत पर कुरबान
इसलिये ये रंग केसरिया हमारी शान।
मुस्लिम ने कहा -
हरा यानी हरियाली
हरियाली है तो खुशहाली
खुशहाली है तो चार-चार घरवाली
और तुम्हारी तरह एक या दो नहीं
एक दर्जन बच्चे पालने से भी नहीं डरते हैं
इसलिये हम इस हरे रंग पर मरते हैं
ये हरा रंग हमारी स्मृद्धि का सितारा है
इसलिये हमको प्यारा है।
ईसाई ने कहा -
सफेद यानी शांति
शांति है तो भाईचारा
इसलिये हम
भाइयों को चारा डालकर
ईसाई बना रहे हैं
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारों पर
सफेद झण्डा लहरा रहे हैं और
जिस दिन भारत के कोने-कोने में
ईसायत का झण्डा लहरायेगा
उस दिन ईसामसीह भारत में जरूर आयेगा
ईसामसीह को दीजिये सम्मान
और करिये तिरंगे को प्रणाम।
सरदार जी बोले -
जो बोले सो निहाल
सब कहो सत श्री अकाल
और बताओ
पहले मुर्गी आई थी या अन्डा
तो क्या कर लेगा तुम्हारा झन्डा
झन्डे में डन्डे की शान निराली है और
इस डन्डे से ही भारत की रखवाली है
तो हम हैं
भारत के चौकीदार
पंच प्यारों के अवतार
देश की रक्षा हमारा नारा है
इसलिये ये डन्डा हमको प्यारा है
इन चारो की बात को सुनकर
ट्रक ड्राईवर को गुस्सा आया
जोर का ब्रेक लगाया और कहा -
झन्डा-डन्डा तो ठीक
अशोक का चक्का भूल गये
अपने-अपने मजहब पर ही फूल गये और
मुझे तो लगता है
ये अशोक का नहीं
मेरे अशोका ट्रक का चक्का है
और ये हम ड्राईवरों की पहचान का पक्का है
और तुम चारों भी
भारत के इस ट्रक के
पहिये बन जाओ और
इस ट्रक में पंचर करने के बजाय
मिलकर कदम बढ़ाओ
तो ये ट्रक नहीं
भारत के विकास का रथ बन जायेगा
और इस पर सवार भारत
भारत नहीं
विश्वगुरू कहलायेगा॥

1 comment:

saurabh said...

very good poems!!! Keep it up ...