Sunday, February 10, 2008

वसन्त विहार दिल्ली कवि सम्मेलन

दिनांक 10 फरवरी 2008 को वसन्त विहार में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की स्मृति में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमे भाजपा के महामंत्री श्री पवन शर्मा व संगठन मंत्री श्री विजय शर्मा उपस्थित थे। आयोजक श्री मनीष चौधरी व सुनील वशिष्ठ ने गरीब बच्चों को छात्रवृति प्रदान की। उपस्थित कवियों ने अपने विचार यूं प्रकट किए -



दीपक अलग है शम्मा अलग है पर उजाला एक है,
कोम के बंटवारे हमने किए पर बनाने वाला एक है।
खून से कब बुझती है आग किसी के पेट की,
पेट की आग बुझाने वाला तो निवाला एक है।
अतुल ज्वाला, इन्दौर





ये गुरु का चमत्कार नहीं है तो और क्या है,
प्रेम पुजारी को तुलसी दास करके दिया
बर्तन मांजने वाले को अर्जुन देव,
महा मूर्ख था तो कालीदास करके दिया
वो दासी पुत्र चन्द्रगुप्त, दाई पुत्र सुकरात,
जुलाहे के पुत्र को कबीर दास करके दिया
मवाली को बाल्मिकी, भीलनी को शबरी रे,
जूते सीने वाले को रैदास करके दिया
पंडित अशोक नागर, शाजापुर (म॰ प्र॰)



द्वेष को प्रीति लिख नहीं सकता
हार को जीत लिख नहीं सकता
जिसमें खुशबू ना हो वतन की मेरे,
ऐसे मैं गीत लिख नहीं सकता।
कृष्ण गोपाल वशिष्ठ 'असीम', गुना (म॰ प्र॰)





धुलती कुदरत से कुदरत नहीं देखी
जमाने को मोहब्बत की जरुरत नहीं देखी
क्या पार करेंगे वतन की किस्ती को,
जिन्होने कभी समुन्द्र की सूरत नहीं देखी
विनोद कुमार, दिल्ली





प्रेम हो प्रीत हो इस नए वर्ष में
सत्य की जीत हो इस नए वर्ष में।
सुर से सुर मिल बने एक ही रागिनी
ऐसा संगीत हो इस नए वर्ष में॥
मधु मोहिनी उपाध्याय, नोएडा




जब बात आपकी ना जाए उस खुदा के पास,
सब कुछ मिलेगा बैठिए इक बार माँ के पास।
डा॰ अंजली सराफ, इन्दौर






मेरे वतन का जहां में कोई जवाब नहीं
गुरुब हो कभी ये ऐसा आफताब नहीं
मेरे वतन को खुदा ने शरफ ये बख्शा है
के जिसको चाट ले दीमक ये वो किताब नहीं
वारिस वारसी, नोएडा




शरीर में बल का,
प्यास में जल का
समय में पल का,
आज नहीं कल का
और भाई,
भैंस के लिए खल का
मजा ही कुछ और है।

जब से देश को मिली है आजादी
और नेताओं ने पहननी शुरु की है शिलक की खादी
हम ठीक समय पर गलत काम करने के हो गए हैं आदी
इसीलिए हो रही है देश की बर्बादी॥
यूसुफ भारद्वाज, दिल्ली



शेखर, सुभाष, अशफाक की धरा है
यहाँ क्रान्ति का प्रवाह कभी रुकने ना पायेगा।
सौ करोड़ जनता के दिल में लहरता ये
लाड़ला तिरंगा कभी झुकने ना पायेगा॥
डा॰ अर्जुन शिशौदिया, गाजियाबाद





आपका दर्द मिटाने का हुनर रखते हैं
जेब खाली है, ख़जाने का हुनर रखते हैं
अपनी आँखों में भले, आसुओं का सागर हो
मगर जहां को हंसाने का हुनर रखते हैं।
डा॰ सुनील जोगी, दिल्ली




पंडित दीनदयाल दीन की पावन महिमा गाते हैं
मानवता के अमर पुजारी को हम शीश झुकाते हैं
राजनीति की कीचड़ में भी तुमने कमल खिलाए हैं 
तिल तिल जीवन जीकर अपना कितने दीप जलाए हैं 
सत्ता के गलियारों में जो कहीं-कहीं उजियारा है
सच्चे अर्थों में पंडित जी वो आलोक तुम्हारा है
राजेश चेतन, दिल्ली

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