Friday, February 1, 2008

ब्लाइंड रिलीफ सोसायटी, दिल्ली का कवि सम्मेलन

दिनांक 31 जनवरी 2008 को लोधी रोड़ स्थित ब्लाइंड रिलीफ सोसायटी, दिल्ली द्वारा एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमे उपस्थित कवियों ने काव्य पाठ किया। श्री गजेन्द्र सोलंकी के संचालन में कवियों द्वारा प्रस्तुत काव्य पाठ के कुछ अंश -


उसके पाँव में नहीं कोई भी छाला निकला,
जो सफलता की अभी पहन कर माला निकला,
हम समझते थे मोहब्बत की गज़ल है शायद,
वो तो रंगीन लतीफों का रीसाला निकला।
तालेवर मधुकर, दिल्ली




हस्ती होती कोई डुबती नाव की
होती तुलसी जो महकी मेरे गाँव की
अम्मा की है नजर शाम से द्वार पर
धूल लौटी नहीं गाय के पाँव की
अनुराग पाठक 'प्रबल'




यूनियन जैक को कंपाने वाले क्रान्तिवीर,
मंगल पाण्डे की वो कहानी याद कीजिए
ब्रिटिश को आइना दिखाने वाले कुँवर सिंह
अस्सी साल वाली वो जवानी याद कीजिए
बहादुर शाह, नाना साहब या तात्या टोपे
झाँसी वाली रानी मर्दानी याद कीजिए
सन अट्ठारह सौ सत्तावन वाली क्रान्ति हेतु
हुए जो शहीद बलिदानी याद कीजिए
गजेन्द्र सोलंकी, दिल्ली


बौराया हिरनीला-मन
फिरता है जंगल-जंगल
सूखे में खोज रहा हरियाली घास
कजरारे बादल से माँगता उजास
पगले को बालू में दिखता है जल
फिरता है जंगल-जंगल
डा॰ कीर्ति काले, दिल्ली


मुझे डर है कही तन्हाई से अपनी ना डर जाए
मुझे डर है कही वो टूट करके ना बिखर जाए
खुदा मेरी दुआओं में असर इतना तो रख लेना
अगर वो डूबना चाहे तो दरिया ही उतर जाए
दिनेश रघुवंशी, फरीदाबाद




अपने ही घर में लगी हुई आग में
तुम अपने हाथ क्यों सेकते हो
युधिष्ठर क्योंकि तुम अब भी
जुआ खेलते हो।
दयाल सिंह पंवार, दिल्ली




राष्ट्र के सम्मान का जो रख न सकेगा ध्यान,
सत्ता सुख छीन के लाचार कर देंगे हम।
निज स्वार्थ में आसक्त बनते जो देश भक्त,
विफल नेतृत्व का प्रचार कर देंगे हम।
शक्ति के उपासकों को क्रोध यदि आ गया तो,
एक ही प्रहार में संघार कर देंगे हम।
मातृभूमि हो अधीर सह न सकेंगे पीर,
लेखनी की नोक को कुठार कर देंगे हम।
विनय शुक्ल 'विनम्र', दिल्ली


न सुमन के लिए, न चुभन के लिए,
गीत गाते है, हम अंजुमन के लिए,
फूल बरसाते है, अमन की राह में,
शब्द रचते हैं, प्यारे वतन के लिए।
प्रीति विश्वास, दिल्ली




न हमसे बात करती हो, न ही तुम मुस्कुराती हो
भला दिल में है ऐसा जो तुम सबसे छुपाती हो
अजब दुर्गंध सी आती है साँसो से दिलबर
बताओ आजकल क्या तुम गुटका चबाती हो
शंभू शिखर, दिल्ली




विदेशी वस्तुओं की होली आपने जलाई बापू
हमको विदेशी माल सबसे ही प्यारा है
चरखा भी भारत में घायल सा दीखता है
खादी हुई नेताओं के वोट का सहारा है
अंग्रेजी अंग्रेजी हर ओर अंग्रेजी
हिन्दी से तो कर लिया हमने किनारा है
गोडसे की गोली से मरा था गांधी का शरीर
गांधीवादियों ने गांधी आत्मा को मारा है
राजेश चेतन, दिल्ली

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