
आचार्य मानतुंग का जो मान रखा आदीप्रभु
प्रार्थना ये करता हूं आपके चरण में
सत्य का पुजारी रहूं दीजिए आशीष मुझे
घूमता रहूं मैं चाहे नगर या वन में
भक्ताम्बर जी की रचना हुई तो देखो
ताले खुल खुल गिरे इक इक क्षण में
आपकी ये वन्दना का पाठ करूं रोज रोज
लीजिए मुझे भी प्रभु अपनी शरण में
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