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Monday, January 14, 2008
भक्ताम्बर जी
आचार्य मानतुंग का जो मान रखा आदीप्रभु प्रार्थना ये करता हूं आपके चरण में सत्य का पुजारी रहूं दीजिए आशीष मुझे घूमता रहूं मैं चाहे नगर या वन में भक्ताम्बर जी की रचना हुई तो देखो ताले खुल खुल गिरे इक इक क्षण में आपकी ये वन्दना का पाठ करूं रोज रोज लीजिए मुझे भी प्रभु अपनी शरण में
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