महंगाई की मार से हर कोई बेहाल
आंसू आंसू रो रहा देखो बुरा हाल
देखो बुरा हाल मचा है हल्ला गुल्ला
कैसे कैसे रोज जलेगा अपना चूल्हा
पानी कीमत को प्यारे नही बढ़ाओ
प्यासी हो जायेगी दिल्ली हमें बचाओ
कैसे कैसे रोज जलेगा अपना चूल्हा
पानी कीमत को प्यारे नही बढ़ाओ
प्यासी हो जायेगी दिल्ली हमें बचाओ
2 comments:
sahee kaha pyase t ohum bhee nahee rehana chahte.
बहुत अच्छी रचना है हम ने तो आँसूयों को बोतल मे सम्भाल कर रखना शुरू कर दिया है मुश्किल मे यही काम आयेंगे
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