Tuesday, March 4, 2008

रोहतक कवि सम्मेलन


दिनांक 4 मार्च 2008 को रोहतक के महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण विभाग द्वारा फाल्गुन पर्व के अन्तर्गत कवि श्री गजेन्द्र सोलंकी के संचालन में एक हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस समारोह के आयोजन में प्रो॰ राजवीर सिंह, प्रो॰ एस पी खट्टर व जगबीर राठी का विशेष योगदान रहा। काव्य के स्वर -

सड़कों पे यदि करवाते कवि सम्मेलन
सूंघते हुए ये पुलिसवाले चले आते हैं,
सलाह मेरी एक मानें भारत के आयोजक
बात पते की हम आपको बताते है।
कभी-कभी कोई कवि जब हूट होने लगे
श्रोतागण जूते चप्पल खूब बरसाते हैं,
कवि सम्मेलन की सफलता है मन्दिरों में
क्योंकि मन्दिरों में सभी नंगे पाव जाते हैं॥
रसिक गुप्ता, दिल्ली


कभी अंधियार को उजियार कहना सीख ना पाया
मैं गंगाजल सा नालों संग बहना सीख ना पाया
जुबां पे प्यार के नग्में दिलों में नफरती दलदल
मैं ऐसे दोस्तों के संग रहना सीख ना पाया
गजेन्द्र सोलंकी, दिल्ली




राखी सावंत !
यानि - लज्जा, शर्म और हया का अंत
एक राखी कम कपड़ों में मंच तो सजा गई
पर उस एक राखी के कारण न जाने कितनी राखियाँ लजा गई।
पण्डित ओम व्यास ओम, उज्जैन


सुथरा तगड़ा छैल छबीला
मर्द मुच्छैल रौब रोबीला
सिंह जैसे तेरे नैन चमकीले
फड़-फड़ फड़कै बाजु जोशीले
खूब गजब की सै तेरी शान
जय जय हिन्द के वीर जवान
जगबीर राठी, रोहतक


माथे पे लगा के चरणों की खाक जी
चढ़ गये हैं फांसियों पे लाखों अश्फाक जी
वन्देमातरम् कुर्बानियों का ज्वार है
वन्देमातरम् जो ना गाये वो गद्दार है

वन्देमातरम् उठा आजादी के साज से
इसीलिए बड़ा है ये पूजा से नमाज से
वन्देमातरम् कुर्बानियों का ज्वार है
वन्देमातरम् जो ना गाये वो गद्दार है
सौरभ सुमन, मेरठ


तेरी वीणा का मुझे तार अगर मिल जाये
और फिर तार में झन्कार अगर मिल जाये
ये तो दरिया है समन्दर भी पार कर लेंगे
तेरे अशीश की पतवार अगर मिल जाये

न हो फूलों की कीमत तो कहीं उपवन नही मिलते
जो मन ही हो मरुथल तो कहीं सावन नही मिलते
कि जिसके दिल में ईश्वर की कहीं मूरत नही कोई
उन्हें पत्थर ही दिखते हैं कभी दर्शन नही मिलते
अनामिका अम्बर, मेरठ


किस आजादी से बजा आजादी का बैण्ड।
सोने की चिड़िया उड़ी सीधी स्विटज़रलैण्ड॥
नयी नस्ल की देखिये कितनी ऊंची कूद।
बच्चे भी रखने लगे बस्तों में बारुद॥
योगेन्द्र मौदगिल, पानीपत




मेरे इस सहिष्णु भारत में, किसी धर्म पर रोक नहीं।
और किसी के पूजा गृह पूजा पद्धति पर टोक नहीं॥
फिर भी क्यों ? तुम बार बार यह अटल सत्य झुठलाते हो।
धर्म आस्था बदली तो पुरुखों के नाम मिटाते हो॥
धर्म एक जीवन पद्धति है जिस पर मानव चलते हैं।
केवल धर्म बदल देने से पुरुखें नहीं बदलते हैं॥
प्रताप फौजदार, आगरा


तुमने 10-10 लाख दिये हैं सैनिक की विधवाओं को।
सोचा कीमत लौटा दी है वीर प्रसूता माँओं को।
लो मैं बीस लाख देता हूँ तुम किस्मत के हेटों को॥
हिम्मत हो तो मंत्री भेजें लड़ने अपने बेटों को॥
विनीत चौहान, अलवर




जला कर ख़ूने दिल अपना ज़माने को हंसाते है
मेरे अल्फाज़ दीमक है उदासी चाट जाते है
तुम अपने ग़म मुझे दे दो बहुत अहसान मानूँगा
ये मेरे ख़ानदानी है मुझे ये रास आते है॥
डा॰ पी के धुत्त, अलीगंज



इस तरह से उसकी याद सताती है
धूप जलाती है, रात रुलाती है।

याद में उसी की मन हुआ है पागल
आंख आंसूओं के छन्द सुनाती है।

हाल देखकर मेरा दीवानों सा
मेरी सखी मुझको पागल बताती है।
डा॰ मंजु दीक्षित, आगरा


जहाँ कहीं भी नई रोशनी छाई है
जहाँ कही भी जीवन की सच्चाई है
दुनिया वाले चाहे उसको धर्म कहे
सच कहता हूँ भारत की परछाई है
राजेश चेतन, दिल्ली

1 comment:

Kavi Kulwant said...

बहुत सुंदर राजेश जी.. कभी याद फर्माइये..
कवि कुलवंत सिंह..