Sunday, November 4, 2007

डा॰ वेन आल्फन हर्मन, (USA) का साक्षात्कार


डा॰ वेन आल्फन हर्मन, टैक्सास विश्वविद्यालय, आस्टिन (USA) में विगत चार दशकों से हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन कर रहे हैं। उन्होनें हिन्दी के क्रियापदों के अलावा हिन्दी की संरचना एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं पर भी शोध कार्य किया है। पिछले दिनों अमरीकी राष्ट्रपति बुश द्वारा घोषित राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा पहल (नेशनल सेक्यूरिटी लैंग्वेज इनीशिएटिव) कार्यक्रम हेतु हिन्दी-उर्दू भाषा के फ्लेगशिप कार्यक्रम के भी वे प्रभारी है। इसी सिलसिले में वे पिछले दिनों दिल्ली आए हुए थे। हिन्दी एवं मीडिया के अध्येता डा॰ जवाहर कर्नावट एवं कवि राजेश चेतन ने उनसे अमेरिका में हिन्दी शिक्षण और हिन्दी की वैश्वीक स्थिति पर लम्बी बातचीत की। बातचीत के प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं –
प्रश्न : आपने हिन्दी क्यों और कैसे सीखी ?

उत्तर : अमेरिका में सभी लोग कोई-न-कोई विदेशी भाषा सीखते हैं। कक्षाओं में बड़ी उम्र में भी भाषा सीखी जाती है। हमारे लिए स्नातकोत्तर स्तर पर यह अनिवार्य था कि एक गैर यूरोपीय भाषा सीखें। संयोग से 40 वर्ष पूर्व मैंने हिन्दी को चुन लिया।

प्रश्न : क्या वह समय अमेरिका में हिन्दी पढ़ने-पढ़ाने का शुरुआती दौर था ?

उत्तर: सन् 1958 में रूसियों ने जब स्पुतनिक छोड़ा तो उसकी हलचल अमेरिका में भी हुई। विज्ञान और भाषा शिक्षा की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया जाने लगा। सन् 1958 में यू॰ एस॰ ए॰ के कुछ चुने हुए विश्वविद्यालय में हिन्दी शिक्षण शुरू हुआ और पाठ्य पुस्तकें तैयार की। दरअसल उस समय प्रवासी भारतीयों की संख्या कम थी। विश्वविद्यालयों में बहुत सीमित कार्य था और छात्र भी कम थे।

प्रश्न : आज अमेरिका में हिन्दी शिक्षण किस स्थिति तक पहुंच गया है ?

उत्तर : अमेरिका में फिलहाल सरकारी स्तर पर हिन्दी की पढ़ाई केवल विश्वविद्यालय स्तर पर ही हो रही है अर्थात् हम शिक्षा में 13 वें से 16 वें वर्ष में हिन्दी पढ़ाते है, लेकिन उद्देश्य है कि हाई स्कूल में भी हिन्दी की शिक्षा दी जाए। ह्यूस्टन में इसकी शुरुआत हो चुकी है। निजी स्तर पर तो अनेक स्थानों पर हिन्दी की पढ़ाई हो ही रही है। भाषा शिक्षण संबंधी वेबसाइट पर देशवासी अपनी भाषा के शिक्षण की व्यवस्था के लिए वोट डाल सकते हैं। हायर सेकेंडरी स्तर पर हिन्दी पढ़ाने के लिए 10 लाख वोट डाले जा चुके हैं। हिन्दी, चीनी को तो अब व्यापार के लिए जरूरी माना जा रहा है। न्यूजर्सी में काफी भारतीय रहते हैं। वहां भी इसकी शुरुआत हो रही है। शनिवार-रविवार को हिन्दी की पढ़ाई अलग से होती है। आज यह दायरा काफी व्यापक हो गया है। ऐसे लोग जिनके माता-पिता भारत के हैं, उनका जुड़ाव भारतीय संस्कृति से होने के कारण भी वे हिन्दी की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी प्रकार पाकिस्तानी उर्दू की ओर बढ़ रहे हैं।

प्रश्न : यह बात तो हुई भारतीय मूल के लोगों की किन्तु क्या अमेरिकन विद्यार्थी भी हिन्दी पढ़ने की ओर अग्रसर हो रहे हैं ?

उत्तर : अमेरिकी छात्रों की संख्या कम है; किन्तु हम चाहते हैं कि उनका झुकाव इस ओर बढ़े। भाषा के फ्लेगशिप कार्यक्रम के माध्यम से उनका रूझान इस ओर बढ़ा भी है। इंजीनियरिंग, विज्ञान, चिकित्सा की शिक्षा की पढ़ाई के साथ-साथ प्रतिदिन एक-एक घंटा हिन्दी/उर्दू पढ़ाने की व्यवस्था भी की गई है। यदि छात्र एंथ्रोपोलाजी पढ़ रहा है तो भी कुछ समय हिन्दी भी पढ़ेगा। इसमें उनकी मदद के लिए सहायक शिक्षक भी होंगे। शिक्षकों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है। मैं भारत इसीलिए आया था – अध्यापकों के चयन के साथ ही नई पाठ्य सामग्री भी तैयार करना है।

प्रश्न : अमेरिकी राष्ट्रपति श्री बुश ने जिस राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा पहल (नेशनल सेक्यूरिटी लैंग्वेज इनीशिएटिव) कार्यक्रम की शुरुआत की है, उसके माध्यम से हिन्दी शिक्षण किस प्रकार आगे बढ़ सकेगा ?

उत्तर : यह एक बहुत बड़ा कार्यक्रम है जिसमें के॰ जी॰ से विश्वविद्यालय तक के विद्यार्थियों, यहां तक कि सरकारी कर्मचारियों में भी अरबी, चीनी, रशियन, हिन्दी, फारसी और अति आवश्यक भाषाएं (Critical Need Languages) जानने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हो। मैंने जिस फ्लेगशिप कार्यक्रम का जिक्र किया था, वह पहले से अरबी, चीनी, कोरियन, रशियन आदि के लिए संचालित है। अब यह कार्यक्रम हिन्दी, उर्दू के लिए भी प्रारंभ किया गया है। इसके अलावा फुलब्राइट भाषा कार्यक्रम में हिन्दी विद्यार्थियों को भारत भेजा जाएगा और हिन्दी भाषा के शिक्षक अमेरिका आएंगे। यह आदान-प्रदान का कार्यक्रम 15-20 विद्यार्थियों से प्रारंभ होकर बढ़ता जाएगा। आप जानते ही होंगे कि अमेरिकन इंस्टिटयूट आफ इंडियन स्टडीज के अन्तर्गत जयपुर में हमारा केन्द्र अमेरिकी विद्यार्थियों को हिन्दी सिखाने के लिए पहले से ही कार्यरत है।

प्रश्न : अमेरिका में हिन्दी शिक्षण की मुख्य बाधा क्या है ?

उत्तर : हिन्दी प्रशिक्षण के लिए बहुत सी सामग्री तैयार करना है। अब हम मीडिया का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहते हैं। विद्यार्थी केवल पढ़े-लिखे ही नहीं सुने भी। टी॰ वी॰ पर भाषा शिक्षण से संबंधित अच्छे कार्यक्रम तैयार हो सकते हैं। भारत के सहयोग से यह कार्य भी हम करने जा रहे हैं। समस्या यह है कि भारत में भी हिन्दी माध्यम की शिक्षा अविकसित है। अविकसित से मेरा आशय उच्च शिक्षा में हिन्दी माध्यम नहीं है। इस कारण भी समस्याएं आती हैं।

प्रश्न : अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की क्या स्थिति है ?

उत्तर : जब तक देश में यानी भारत में हिन्दी पूरी तरह स्वीकार नहीं होती तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कैसे स्थापित होगी। यहां लोग मजबूरी में अन्तर्राष्ट्रीय बनने की कोशिश करते हैं, जबकि दूसरे देशों में ऐसा नहीं है। बहुभाषिक देश होने के कारण भी समस्या है। अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा होने से भी विपरीत प्रभाव होता है; किन्तु यह स्थिति बदलेगी नहीं। संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी को लाने की कोशिश हो रही है। किन्तु जब तक भारतीय प्रतिनिधि वहां हिन्दी में बोलेंगे ही नहीं तो यह कैसे संभव होगा। विश्व हिन्दी सम्मेलन न्यूयार्क में हो रहा है। अगर हिन्दी की स्थिति भारत में अच्छी होती तो विश्व हिन्दी सम्मेलन की जरूरत ही नहीं होती।

साभार
http://pravasisansar.com

1 comment:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

एक उम्दा प्रविष्टी के लिए आपका साधुवाद --

-- लावण्या